पुरखों की रिवायत है इसे तुम भी निभाओ / परवेज़ बागी
पुरखों की रिवायत है इसे तुम भी निभाओ
प्यासों को समन्दर से बहुत दूर बसाओ
[रिवायत = परम्परा]
यूँ फ़िक्र में हर शख़्स की ख़ुद को न घुलाओ
जीना है तो फिर दिल को भी पत्थर का बनाओ
ये याद रहे ज़ुल्म की हद होती है यारो
तुम हम को सताओ मगर इतना न सताओ
[ हद = सीमा]
हर ख़्वाब-ए-कोहन तिश्ना-ए-तस्वीर है जब तक
तुम कोई नया ख़्वाब न लोगों को दिखाओ
[ख़्वाब-ए-कोहन = पुराना सपना; तिश्ना = प्यास]
[तिश्ना-ए-तस्वीर = महसूस/पूरा होने का इन्तेज़ार ]
जागे हुये सोने पे रज़ामन्द नहीं हैं
सोये हुये लोगों को न 'परवेज़' जगाओ
[रज़ामन्द = राज़ी]
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