Wednesday, June 20, 2007

तुम्हारे ग़म का मौसम है अभी तक \ अनीस अन्सारी








तुम्हारे ग़म का मौसम है अभी तक
लब-ए-तश्ना पे शबनम है अभी तक

[लब-ए-तश्ना = प्यासे होंठ]

सफ़र में आबले ही आबले थे
मगर पैरों में दम-ख़म है अभी तक

[आबला = फ़फ़ोले; दम-ख़म = ताक़त/शक्ती]

तुम्हारे बंद दर मुझ से ख़फ़ा हैं
मेरे जीने का मातम है अभी तक

[दर = दरवाजा; ख़फ़ा = क्रोधित; मातम = शोक]

तेरी आब-ओ-हवा रास आ गई थी
बिछड़ जाने का कुछ ग़म है अभी तक

[आब-ओ-हवा = वातावरण; रास आना = अच्छा लगना]

गई रुत में हुई थी फ़सल अच्छी
इधर पानीइ गिरा कम है अभी तक

[रुत = मौसम; फ़सल = खेती]

मैं ख़ुद को ढूँढता फिरता हूँ सब में
जुनूँ का इक आलम है अभी तक

3 Comments:

At 11:11 pm , Blogger इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वह भाई
इनका एक शेर तो मैं झट्कूगा. क्या ख़ूब कहा है -
मैं ख़ुद को ढूँढता फिरता हूँ सब में
जुनूँ का इक आलम है अभी तक.

 
At 6:43 am , Blogger Udan Tashtari said...

अनीस जी की गजल पेश करने लिये आभार.

 
At 8:14 am , Blogger Divine India said...

प्रत्येक शब्द में दर्द का अहसास… आपके दर्द नाम को पूरी तरह सार्थक कर रहा है।

 

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