Sunday, June 24, 2007

चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं \ आबिद अली 'आबिद'


चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
वो तो बेचारे ख़ुद हैं भिखारी डेरे डेरे फिरते हैं

जिन गलियों में हम ने सुख की सेज पे रातें काटी थीं
उन गलियों में व्याकुल होकर साँझ सवेरे फिरते हैं

रूप-सरूप की जोत जगाना इस नगरी में जोखिम है
चारों खूँट बगूले बन कर घोर अन्धेरे फिरते हैं

जिन के शाम-बदन साये में मेरा मन सुस्ताया था
अब तक आँखों के आगे वो बाल घनेरे फिरते हैं

कोई हमें भी ये समझा दो उन पर दिल क्यों रीझ गया
तीखी चितवन बाँकी छबि वाले बहुतेरे फिरते हैं

इस नगरी में बाग़ और बन की यारो लीला न्यारी है
पंछी अपने सर पे उठाकर अपने बसेरे फिरते हैं

लोग तो दामन सी लेते हैं जैसे हो जी लेते हैं
'आबिद' हम दीवाने हैं जो बाल बिखेरे फिरते हैं

2 Comments:

At 9:28 pm , Blogger सुनीता शानू said...

बहुत अच्छा लिखते है आप...
कोई हमें भी ये समझा दो उन पर दिल क्यों रीझ गया
तीखी चितवन बाँकी छबि वाले बहुतेरे फिरते हैं

जरूरी नही इसे समझाना...आप अपने दिल से ही पुछिये अकेले में... [:)]

कब किसपर आ जाये दिल किसको खबर है...
सुनीता(शानू)

 
At 11:05 pm , Blogger इष्ट देव सांकृत्यायन said...

भाई गौरव जी
आप इतनी बढ़िया-बढ़िया गजलें रोज पोस्ट कर रहे हैं कि तबीयत हरी हो जा रही है. अल्ल्ला ताला अपको लंबी उम्र बख्शें और आप रोज ऎसी ही गजलें पोस्ट करते रहें. हो सके तो हिंदी के कुछ गीत भी लगाएं. वैसे भी आपका तो नारा ही है : वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान...............

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home

Get this widget | Share | Track details