पंचायत
दरवाजे पे देर रात बाप ने साँकल बजाया,
लड़खड़ाते कदमोँ से घर में दाखिल हुआ।
आधी रात तक माँ का आँचल भीगता रहा,
अँधेरे में बच्चों का बचपन खोता रहा।
चूल्हा रात भर गर्म होने का इन्तज़ार करता रहा।
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कल मुहल्ले में बारात आयी थी,
सुबह, दुल्हन सबसे लिपट के रोयी।
दर्द की वजह का तो पता नहीं पर,
पडोस के बंद कमरे में एक तकिया भीगता रहा,
एक लड़का नौकरी की तलाश में कहीं बाहर जा रहा है.
3 Comments:
बिना कुछ कहे, कितना कुछ कह गयीं आपकी कविता।
gaagar me saagar.....
hey,
really a very good creation indeed..
Unbelievable u can write good poems also....just kidding... reallya good work
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