Monday, July 09, 2007

सू-ए-मैकदा न जाते तो कुछ और बात होती \ आगा हश्र





सू-ए-मैकदा न जाते तो कुछ और बात होती
वो निगाह से पिलाते तो कुछ और बात होती

[सू-ए-मैकदा=शराबखाने की ओर]

गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मेरे दिल की लाज रख ली
वो नक़ाब ख़ुद उठाते तो कुछ और बात होती


ये बजा कली ने खिल कर किया गुलसिताँ मुअत्तर
मगर आप मुस्कुराते तो कुछ और बात होती

[मुअत्तर= इत्र से भरा]

ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू सँवारे
मेरे हाथ से सँवरते, तो कुछ और बात होती

गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गये ख़ुदा तक
तेरी राहगुज़र से जाते तो कुछ और बात होती

1 Comments:

At 2:51 am , Blogger Kamran Perwaiz said...

bhaiye bahut accha kaam kar rahe hai. har roj nai nai shayeri, aur wo bhi dil ko chu lene wali. hame bhi yaad rakhe.
kamranperwaiz@sify.com
-www.intajar.blogspot.com

 

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