Thursday, June 21, 2007

साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं \ अख्तर अन्सारी


साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुँह से कहते हुये ये बात मगर डरते हैं



एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया
जिस में रन्गों की इवज़ ख़ूं-ए-जिगर भरते हैं

[इवज़ = की जगह]


इशरत-ए-रफ़्ता ने जा कर न किया याद हमें
इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं

[इशरत-ए-रफ़्ता=बीते दिनों की खुशी]


आस्माँ से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशी
अब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैं


शेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिन
अच्छे शायर ये सुना है कि जवाँ मरते हैं

1 Comments:

At 2:04 am , Blogger Gaming Duniya said...

Behtarin aur bahut hi umda kism ki .............

Dhayawad
Dhiraj chaurasia

 

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