साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं \ अख्तर अन्सारी
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुँह से कहते हुये ये बात मगर डरते हैं
एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया
जिस में रन्गों की इवज़ ख़ूं-ए-जिगर भरते हैं
[इवज़ = की जगह]
इशरत-ए-रफ़्ता ने जा कर न किया याद हमें
इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं
[इशरत-ए-रफ़्ता=बीते दिनों की खुशी]
आस्माँ से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशी
अब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैं
शेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिन
अच्छे शायर ये सुना है कि जवाँ मरते हैं
1 Comments:
Behtarin aur bahut hi umda kism ki .............
Dhayawad
Dhiraj chaurasia
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