कुछ नहीं है मेरे पास सिवा दर्द के खोने को / गौरव प्रताप
कुछ नहीं है मेरे पास सिवा दर्द के खोने को,
यादें भी ना रहने दोगे क्या मुझे संजोने को
ये माना कि ग़मों की बाग़वानी है तेरा शौक लेकिन,
सिर्फ़ मेरा ही दिल मिला था ज़ख्म बोने को
दावा चांद का कि वो गवाह है मेरे रतजगों का,
झूठा! जाता है मुझे छोड़ अमावस की रात सोने को
तन्हा बरसा हूं मै भी तुझे याद करके बाद्लों की तरह,
पर पास था सिर्फ़ मेर तकिया भिगोने को
अब तेरे शहर में भी लोग फ़ूलों की बात करते हैं,
कलेजे कम पड़ गये हैं क्या काँटे चुभोने को
हम भी भूल जायेंगे वो रंगीन-वादे, वो महक़-ए-सबा
कुछ वक़्त लगता है दाग़-ए-खूँ-ए-पैरहन धोने को
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अब तेरे शहर में भी लोग फ़ूलों की बात करते हैं,
कलेजे कम पड़ गये हैं क्या काँटे चुभोने को
सुन्दर प्रस्तुति।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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