Sunday, June 03, 2007

एक जू -ए-दर्द दिल से जिगर तक रवां है आज \ अली सरदार ज़ाफ़री


एक जू -ए-दर्द दिल से जिगर तक रवां है आज
पिघला हुआ रगों में इक आतिश -फिशां है आज

[जू -ए -दर्द = दर्द की नदी ; रवां = बहता हुआ / गतिमान ]
[राग = नस ; आतिश -फिशां = ज्वालामुखी / वोल्कानो]

लब सी दिए हैं ता ना शिक़ायत करे कोई
लेकिन हर एक ज़ख्म के मुँह में ज़बान है आज

[ ता = ताकि / अतः]

तारीकियों ने घेर लिया है हयात को
लेकिन किसी का रू -ए -हसीं दरमियान है आज

[तारीकी = अँधेरा ; हयात = जिन्दगी ; रू -ए -हसीं = खूबसूरत चेहरा ; दरमियान = बीच ]

जीने का वक़्त है यही मरने का वक़्त है
दिल अपनी ज़िंदगी से बहुत शादामान है आज

[शादामान = खुश ]

हो जाता हूँ शहीद हर अहल -ए -वफ़ा के साथ
हर दास्ताँ -ए -शौक़ मेरी दास्ताँ है आज

[अहल -ए -वफ़ा = वफ़ा करने वाला ]
[दास्ताँ -ए -शौक़ = प्यार की कहानी ]

आये हैं इस निशात से हम क़त्ल -गाह में
जख्मों से दिल है चूर नज़र गुल -फिशां है आज

[निशात = ख़ुशी ; क़त्ल -गाह = क़त्ल करने कि जगह ]
[चूर = टूटा हुआ ; गुल -फिशां = फूल गिराने वाली ]

ज़िन्दानियों ने तोड़ दिया ज़ुल्म का गुरूर
वो दब -दबा वो रोआब -ए -हुकूमत कहाँ है आज

[ज़िन्दानी = कैदी ; गुरूर = घमंड ]
[दब -दबा = दिखावा ; रोआब = आतंक ; हुकूमत = शासन ]

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