एक जू -ए-दर्द दिल से जिगर तक रवां है आज \ अली सरदार ज़ाफ़री
एक जू -ए-दर्द दिल से जिगर तक रवां है आज
पिघला हुआ रगों में इक आतिश -फिशां है आज
[जू -ए -दर्द = दर्द की नदी ; रवां = बहता हुआ / गतिमान ]
[राग = नस ; आतिश -फिशां = ज्वालामुखी / वोल्कानो]
लब सी दिए हैं ता ना शिक़ायत करे कोई
लेकिन हर एक ज़ख्म के मुँह में ज़बान है आज
[ ता = ताकि / अतः]
तारीकियों ने घेर लिया है हयात को
लेकिन किसी का रू -ए -हसीं दरमियान है आज
[तारीकी = अँधेरा ; हयात = जिन्दगी ; रू -ए -हसीं = खूबसूरत चेहरा ; दरमियान = बीच ]
जीने का वक़्त है यही मरने का वक़्त है
दिल अपनी ज़िंदगी से बहुत शादामान है आज
[शादामान = खुश ]
हो जाता हूँ शहीद हर अहल -ए -वफ़ा के साथ
हर दास्ताँ -ए -शौक़ मेरी दास्ताँ है आज
[अहल -ए -वफ़ा = वफ़ा करने वाला ]
[दास्ताँ -ए -शौक़ = प्यार की कहानी ]
आये हैं इस निशात से हम क़त्ल -गाह में
जख्मों से दिल है चूर नज़र गुल -फिशां है आज
[निशात = ख़ुशी ; क़त्ल -गाह = क़त्ल करने कि जगह ]
[चूर = टूटा हुआ ; गुल -फिशां = फूल गिराने वाली ]
ज़िन्दानियों ने तोड़ दिया ज़ुल्म का गुरूर
वो दब -दबा वो रोआब -ए -हुकूमत कहाँ है आज
[ज़िन्दानी = कैदी ; गुरूर = घमंड ]
[दब -दबा = दिखावा ; रोआब = आतंक ; हुकूमत = शासन ]
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