पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है / मीना कुमारी ' नाज़'
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है ना अब आस्तीन तर होती है
जैसे जागी हुई आंखों में चुभें कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुश्बू
कभी मंज़िल कभी तम्हीद -ए -सफ़र होती है
[ मरकज़ = लक्ष्य ; तम्हीद -ए -सफ़र = सफ़र की शुरुआत ]
6 Comments:
Bahut Khub!!
Bahut Khub!!
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है ना अब आस्तीन तर होती है
मीना कुमारी का ये शेर दिल को छू गया ! बहुत खूब !
Bahut khoobsoorat Ghazal Gaurav Ji, Mina Kumari Ke Vyaktitva ka ye pehloo to humse anjaana hee tha.
Bahut....Bahut badhai. Jaree rakhhen is Shrinkhala ko.
बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुश्बू
कभी मंज़िल कभी तम्हीद -ए -सफ़र होती है
धन्यवाद गौरव भाई इस ग़ज़ल को याद दिलाने के लिये. यह ग़ज़ल (व मीना जी की अन्य ग़ज़लें) खुद मीना कुमारी जी की आवाज़ में उपलब्ध हैं, इधर देखिये:
http://aligarians.com/2006/04/puuchhte-ho-to-suno-kaise-basar-hotii-hai/
अमित
http://khulepanne.wordpress.com
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