सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में
[ख़ुलूस=मिठास]
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गये सवालों में
रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे को-ई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गये उजालों में
1 Comments:
अच्छा है भाई ज़रा ये वाली ग़ज़ल भी लाईये
हम तो दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा ।
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