Thursday, May 31, 2007

हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं / साहिर लुधियानवी


हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं
मैं मुंतज़िर हूँ मगर तेरा इन्तज़ार नहीं


हमीं से रन्ग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रन्ग-ए-बहार
हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं


अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत अए मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुशगवार नहीं


तुम्हारे अह्द-ए-वफ़ा को अहद मैं क्या समझूँ
मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत का ऐतबार नहीं


न जाने कितने गिले इस में मुज़्तरिब है नदीम
वो एक दिल जो किसी का गिलागुसार नहीं


गुरेज़ का नहीं क़ायल हयात से लेकिन
जो सोज़ कहूँ तो मुझे मौत नागवार नहीं

ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं

1 Comments:

At 1:34 pm , Blogger अनामदास said...

दोस्त
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, आया तो लौटकर जाने में काफ़ी वक़्त लग गया. बहुत सुंदर संकलन है, मैं आपकी मेहनत और अच्छा शायरी को बाँटने की भावना को सलाम करता हूँ. तक़रीबन सारी पोस्ट पढ़ डाली.
जितनी रचनाएँ छाप सकें, छापें, ताकि अमर साइबर दुनिया में ये रचनाएँ हमेशा के लिए, सबके लिए दस्तयाब रहें.
एहसानमंद हूँ.
अनामदास

 

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