Wednesday, May 23, 2007

दीदा-ए-तर में तिश्नगी है अभी / मिदहतुल अख्तर


आग पूरी कहाँ बुझी है अभी
दीदा-ए-तर में तिश्नगी है अभी

[दीदा-ए-तर = गीलीं आंखें]
[तिश्नगी = प्यास]

दोस्तों से चुका रहा हूँ हिसाब
दुश्मनों से कहाँ ठनी है अभी

दोस्त कह कर मुझे न दे गाली
दिल पे इक ज़ख़्म-ए-दोस्ती है अभी

काट दे ये भी ख़ुदपरस्ती में
और थोड़ी सी ज़िन्दगी है अभी

[ख़ुदपरस्ती = स्वार्थ]

जाने क्यों कुन्द हो गया नश्तर
ज़ख़्म की धार तो वही है अभी

[कुन्द = बिन धार का; नश्तर = चाकू]

2 Comments:

At 3:45 am , Blogger Mohinder56 said...

दोस्त तारीकियां है इस जहां में अगर
तो बाकी है बहुत सी रोशनी भी अभी

 
At 5:42 am , Blogger संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" said...

सुबहान अल्ला....

 

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