दीदा-ए-तर में तिश्नगी है अभी / मिदहतुल अख्तर
आग पूरी कहाँ बुझी है अभी
दीदा-ए-तर में तिश्नगी है अभी
[दीदा-ए-तर = गीलीं आंखें]
[तिश्नगी = प्यास]
दोस्तों से चुका रहा हूँ हिसाब
दुश्मनों से कहाँ ठनी है अभी
दोस्त कह कर मुझे न दे गाली
दिल पे इक ज़ख़्म-ए-दोस्ती है अभी
काट दे ये भी ख़ुदपरस्ती में
और थोड़ी सी ज़िन्दगी है अभी
[ख़ुदपरस्ती = स्वार्थ]
जाने क्यों कुन्द हो गया नश्तर
ज़ख़्म की धार तो वही है अभी
[कुन्द = बिन धार का; नश्तर = चाकू]
2 Comments:
दोस्त तारीकियां है इस जहां में अगर
तो बाकी है बहुत सी रोशनी भी अभी
सुबहान अल्ला....
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home