बादाबां खुलने से पहले का इशारा देखना/ परवीन शाकिर
बादाबां खुलने से पहले का इशारा देखना,
मैं समंदर देखती हूँ तुम किनारा देखना
यूं बिछड़ना भी बहुत आसां ना था उस से मगर,
जाते जाते उस का वो मुड़ के दुबारा देखना
किस शबाहत को लिए आया है दरवाजे पे चांद
ए शब्-ए -हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना
[ शबाहत = आकार ; शब् -ए-हिज्राँ = बिछड़ने की रात ]
आईने की आंख ही कुछ कम ना थी मेरे लिए
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना
6 Comments:
बहुत खूब
वाह वाह
आईने की आंख ही कुछ कम ना थी मेरे लिए
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना
कमाल कर दिया हुजूर
बधाई....
परवीन शाकिर जी यह गजल पढ़कर आनन्द आया. धन्यवाद इस पेशकश के लिये.
परवीन शाकिर जी बहुत अच्छी गजल है..विषेश कर ये पक्तिंयाँ पसंद आइ हैं...
यूं बिछड़ना भी बहुत आसां ना था उस से मगर,
जाते जाते उस का वो मुड़ के दुबारा देखना
आईने की आंख ही कुछ कम ना थी मेरे लिए
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना
बहुत-बहुत बधाई
सुनीता चोटिया(शानू)
bahut khoob ghazal !
बहुत खूब।
लाजवाब।
माशाअल्ल्लह।
समझ में ये नही आता, करूं तारीफ मैं कैसे?
खुदाया आप जैसा कहने का अनदाज़ क्योंकर हो??
1-उडन तस्तरी तुम्हारी उड़ान पर तरस आता है परवीन शाकिर हयात नहीं हैं वे पाकिस्तान की
मशहूर शायरा थी.
2-सुनीता जी आप भी भ्रम में हैं.बाकी का तो कहना ही क्या आप लोग भी तो कविता लिखते हैं और इतना भी पता नहीं.परवीन शाकिर पर सर्च कीजिए.
3- उर्दू ग़ज़ल में उनका नाम बड़ी इज्ज़त से लिया जाता है.
4- संकलन कर्ता को ये भ्रम दूर करने चाहिए थे.
5-कुछ उनके शेर पेश हैं-
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उसने,
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की,
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया,
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की.
मर्हूम परवीन शाकिर.
30-5-07
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