ये हर रोज़ गली मे खडे होकर मुझे पुकारता कौन है / गौरव प्रताप
ये हर रोज़ गली मे खडे होकर मुझे पुकारता कौन है,
इस अजनबी अनजान शहर मे मेरा नाम जानता कौन है,
रात भर सीने से अंगारे बाँध तड़पता तो मैं हूँ,
फिर ये तेरे सामने जिगर पे जख्म लिए आता कौन है
सो जाएँ जो चिराग शहर के,मेरे दर पे दस्तक दे देना,
यकीन आ जाएगा यहाँ तमाम रात जागता कौन है
दरवेश इस उम्मीद में था, के कोई आँखें पढ़ लेगा,
भूल बैठा के अब ये ज़बान समझाता कौन है
कलम से रिश्ता तोड़े तो मुझे एक ज़माना गुजरा,
फिर ये तेरी शान मे ग़ज़ल लिखने वाला कौन है
6 Comments:
गौरव जी,आत्ममंथन करती आप की रच ना बहुत बढिया है।
again gud work ...
I reaaly admire your depth.
Praveen
गौरव जी आज पहली बार आपकी गज़ल पढी वाकई मज़ा आ गया..मगर अब तक क्यूँ ना पढी इस बात का बेहद मलाल हुआ...बहुत ही उम्दा लिखते है आप..बहुत-बहुत बधाई...
सुनीता चोटिया (शानू)
Heyy...really good one
superb
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