Monday, July 16, 2007

मेरी तस्वीर में रंग और किसी का तो नहीं / मुज़फ़्फ़र वारसी







मेरी तस्वीर में रंग और किसी का तो नहीं
घेर लें मुझको सब आ के मैं तमाशा तो नहीं


ज़िन्दगी तुझसे हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझको मगर इतना तो नहीं


रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें न मिली
तुझको महसूस किया है तुझे देखा तो नहीं


सोचते सोचते दिल डूबने लगता है मेरा
ज़हन की तह में 'मुज़फ़्फ़र' कोई दरिया तो नही.

2 Comments:

At 11:24 pm , Blogger इष्ट देव सांकृत्यायन said...

रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें न मिली
तुझको महसूस किया है तुझे देखा तो नहीं
वाह! क्या ख़ूब कहा है.

 
At 4:59 am , Blogger Sajeev said...

yah meri fav ghazal hai dost ise lata di ne album sajda ke liye gaya hai suna hi hoga aapne

 

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