Thursday, June 07, 2007

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा /बशीर बद्र


भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा

इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें
बाज़ार में ऐसा कोई ज़ेवर न मिलेगा

ये सोच लो अब आख़िरी साया है मुहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा

1 Comments:

At 2:51 am , Blogger 36solutions said...

गुलशन गुलशन रंगी गुंचे जेरे जमी है दफन मगर ।
हैरां है इस वीराने का नाम गुलिस्‍तां आज भी है ।।
हमने भी आपको जनाब बद्र साहब के शव्‍दों में धन्‍यवाद दिया

 

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