Tuesday, June 12, 2007

अमन का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं \ माजिद देवबंदि



अमन का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं
गलियों-गलियों आग लगाने वाले हैं

तुम ले जाओ नेज़ा ख़न्जर और तल्वार
हम मक़्तल में सर ले जाने वाले हैं

[नेज़ा= भाला; मक़्तल=वधस्थल]

ज़ुल्म के काले बादल से डरना कैसा
ये मौसम तो आने जाने वाले हैं

बीमारों का अब तो ख़ुदा ही हाफ़िज़ है
सारे मसीहा ज़हर पिलाने वाले हैं

जान बचाने वाले तो सब हैं लेकिन
अब कितने इमान बचाने वाले हैं

हम को उन वलियों की निस्बत हासिल है
दश्त को जो गुलज़ार बनाने वाले हैं

भूखा रह के साइल को ख़ैरात जो दे
हम भी 'मजिद' उसी घराने वाले हैं

[साइल = भिखारी]

2 Comments:

At 8:49 pm , Blogger राजीव रंजन प्रसाद said...

गौरव जी बडी ही सुन्दर रचना पढवायी आपने..आभार।

तुम ले जाओ नेज़ा ख़न्जर और तल्वार
हम मक़्तल में सर ले जाने वाले हैं

बीमारों का अब तो ख़ुदा ही हाफ़िज़ है
सारे मसीहा ज़हर पिलाने वाले हैं

*** राजीव रंजन प्रसाद

 
At 4:02 am , Blogger सुनीता शानू said...

बहुत सुंदर रचना है..आज के हालात पर आपके सही लिखा है
अमन का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं
गलियों-गलियों आग लगाने वाले हैं

बीमारों का अब तो ख़ुदा ही हाफ़िज़ है
सारे मसीहा ज़हर पिलाने वाले हैं
सुंदर भाव-पूर्ण रचना...

सुनीता(शानू)

 

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