Sunday, June 10, 2007

दालानों में कमरों में उलझाये हुये रखना \ अन्जुम इरफ़ानी



दालानों में कमरों में उलझाये हुये रखना
कुछ काम में अपने को बहलाये हुये रखना

दुनिया के मसाइल में उलझा हुआ जब आऊँ
तुम घर के मसाइल को सुलझाये हुये रखना

सन्दूक के कपड़ों को कुछ धूप दिखा देना
तुम सहन में जाड़े को फैलाये हुये रखना

मैं धूप के सहरा से झुलसा हुआ आऊँगा
शानों पे घटाओं को ठहराये हुये रखना

हो जायें कभी शब में बच्चों से भी दो बातें
परियों की कहानी को दोहराये हुये रखना

धुन्धला न कहीं कर दे कुछ घर की परेशानी
आईना-ए-रुख़ अपना चमकाये हुये रखना

इक उम्र पे भी उस का अन्दाज़ वही 'अन्जुम'
कमरे में क़दम रखना शर्माये हुये रखना

1 Comments:

At 7:17 am , Blogger Monika (Manya) said...

आज कि व्यस्त जीवन के संदर्भ में .. बहुत खूब्सुरत ख्वाहिशें हैं..

 

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