Monday, June 11, 2007

अपने साये से भी अश्कों को छुपा कर रोना / निसार तरीन ज़ाज़िब


अपने साये से भी अश्कों को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो चराग़ों को बुझा कर रोना

हाथ भी जाते हुये वो तो मिलाकर न गया
मैं ने चाहा जिसे सीने से लगा कर रोना

तेरे दीवाने का क्या हाल किया है ग़म ने
मुस्कुराते हुये लोगों में भी जा कर रोना

लोग पढ़ लेते हैं चेहरे पे लिखी तहरीरें
इतना दुश्वार है लोगों से छुपा कर रोना

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