इक इंतज़ार सा था अब नज़र में वो भी नहीं / महशर बदयूनी
इक इंतज़ार सा था अब नज़र में वो भी नहीं
सफ़र में मरने की फुर्सत थी घर में वो भी नहीं
ज़रा मलाल की ज़ुल्मत को टालने के लिए
कई ख़याल थे अब तो असर में वो भी नहीं
[मलाल = दुःख ; ज़ुल्मत = अँधेरा; असर = प्रभाव]
जो संग -ओ -खार थे मेरी ही गर्दिशों तक थे
मैं आह -गुज़र में नही राह -गुज़र में वो भी नहीं
[संग = पत्थर ; खार = कांटे ]
थे चश्म -ए -बाम नगर में अजब तुलू के रंग
वो इक निशात -ए -सहर था सहर में वो भी नहीं
[तुलू = सुबह ; निशात -ए -सुबह = सुबह की ख़ुशी ]
रहे ना कुछ भी मगर ये कैफ़ क्या कम है
जिस आगाही की कमी थी हुनर में वो भी नहीं
[कैफ़ = प्रभाव / नशा ; आगाही = चेतावनी ; हुनर = गुण ]
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