देखा तो मेरा साया भी मुझ से जुदा मिला \ अयाज़ झांसवी
देखा तो मेरा साया भी मुझ से जुदा मिला
सोचा तो हर किसी से मेरा सिलसिला मिला
शहर-ए-वफ़ा में अब किसे अहल-ए-वफ़ा कहें
हम से गले मिला तो वो ही बेवफ़ा मिला
फ़ुर्सत किसे थी जो मेरी हालात पूछता
हर शख़्स अपने बारे में कुछ सोचता मिला
उस ने तो ख़ैर अपनों से मोड़ा था मुँह हाय
मैं ने ये क्या किया के मैं ग़ैरों से जा मिला
1 Comments:
अच्छी ग़ज़ल हैं जनाब और लिखा है और लिखे पद कर अच्छा लगा
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