Thursday, June 14, 2007

दिल में दर्द आह बलब चश्म गुहरबार लिये / अख्तर संदेलवी




दिल में दर्द आह बलब चश्म गुहरबार लिये
यूँ जिया जाता है ऐ दोस्त तो फिर कौन जिये

ख़ून है हर ग़म-ए-हस्ती का हमारे सिर पर
हम ग़म-ए-इश्क़ के मारों ने बड़े पाप किये

चाँद के चेहरे पे मख़्मूर ग़िलाफ़ी आँखें
सन्ग-ए-मर्मर के हसीं ताक़ों में जलते हैं दिये

मैं था बे-सरो-सामाँ बहुत साफ़ बचा
राह में राहनुमाओं ने बड़े दाव किये

जब से आग़ोश-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त में आ बैठा हूँ
ढूँढते फिरते हैं क़ासिद तेरे पैग़ाम लिये

रश्क से देखते हैं तुझ को कई ज़ोह्राजबीं
हम निकलते हैं जब हाथों में तेरा हाथ लिये

पहले तश्वीश सुकून-ए-दिल व जाँ थीं 'अख्तर'
अब परेशाँ हूँ अफ़कार परेशाँ के लिये

1 Comments:

At 11:32 am , Blogger Naveen Joshi said...

Bahut Sundar

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home

Get this widget | Share | Track details