Friday, May 11, 2007

ताजमहल / साहिर लुधियानवी


ताज तेरे लिए इक मज़हरे-उल्‍फ़त ही सही
तुझको इस वादिये रंगीं से अकीदत ही सही
मेरे मेहबूब कहीं और मिला कर मुझसे

[मज़हर-ऐ-उल्‍फत—प्रेम का प्रतिरूप;वादिए-रंगीं—रंगीन घाटी;]

बज़्मे-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्‍या मानी
सब्‍त जिस राह पे हों सतवते शाही के निशां
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्‍या मानी
मेरे मेहबूब पसे-पर्दा-ए-तशहीरे-वफ़ा तूने
सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक-मकानों को तो देखा होता

[बज्मे शाही—शाही महफिल;सब्‍त—अंकित; सतवते-शाही— शाहाना शानो शौक़त;पसे-पर्दा-ए-तशहीरे-वफ़ा—प्रेम के प्रदर्शन/विज्ञापन के पीछे;]

अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्‍बत की है
कौन कहता है सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिए तशहीर का सामान नहीं
क्‍योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे

[ तारीक—अंधेरे; सादिक़—सच्‍चे;तशहीर का सामान—विज्ञापन की सामग्री;]

ये इमारतो-मकाबिर, ये फ़सीलें, ये हिसार
मुतलक-उल-हुक्‍म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूं
दामने-दहर पे उस रंग की गुलकारी है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे अज़दाद का खूं
मेरी मेहबूब, उन्‍हें भी तो मुहब्‍‍बत होगी
जिनको सन्‍नाई ने बख्‍शी शक्‍ले-जमील
उनके प्‍यारों के मक़ाबिर रहे बेनामो-नुमूद
आज तक उन पे जलाई ना किसी ने कंदील


[मक़ाबिर—मकबरे;हिसार—किले;मुतलक-उल-हुक्‍म—पूर्ण सत्‍ताधारी;अज़्मत—महानता;सुतूं—सुतून;दामने-देहर—संसार के दामन पर;अज़दाद—पुरखे;ख़ूं—खून;सन्‍नाई—कारीगरी;शक्‍ले-जमील—सुंदर रूप;बेनामो-नुमूद—गुमनाम]


ये चमनज़ार, ये जमना का किनारा, ये महल
ये मुनक्‍क़श दरोदीवार, ये मेहराब, ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम ग़रीबों की मुहब्‍बत का उड़ाया है मज़ाक़
मेरे मेहबूब कहीं और मिला कर मुझे ।।

[चमनज़ार—बाग़;मुनक़्क़श—नक्‍काशी]

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home

Get this widget | Share | Track details